परिचय
ऑटोइम्यून बीमारियाँ तब होती हैं जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) अपने ही अंगों, ऊतकों या कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। ये बीमारियाँ कई रूपों में हो सकती हैं, जैसे रुमेटॉइड आर्थराइटिस, ल्यूपस, शोग्रेन्स सिंड्रोम, सोरायटिक आर्थराइटिस, और मल्टीपल स्क्लेरोसिस। दिलचस्प बात यह है कि इन रोगों का महिलाओं में प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 3 से 4 गुना अधिक होता है। पर क्यों?
इस सवाल के पीछे कई जैविक, हार्मोनल, और आनुवंशिक कारण छिपे हुए हैं।
1. हार्मोनल प्रभाव (Hormonal Influence):
महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित करते हैं। एस्ट्रोजन की अधिकता से इम्यून सिस्टम अधिक सक्रिय हो सकता है, जिससे ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया की संभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण के तौर पर, ल्यूपस जैसी बीमारियाँ अक्सर युवावस्था या प्रेगनेंसी के दौरान उभरती हैं, जब हार्मोनल बदलाव सबसे अधिक होते हैं।
- मासिक धर्म चक्र, गर्भावस्था और मेनोपॉज़ के दौरान इम्यून प्रतिक्रियाओं में बदलाव देखा जाता है।
2. जेनेटिक कारण (Genetic Factors):
महिलाओं की X क्रोमोसोम की जोड़ी (XX) भी एक कारण है। पुरुषों में एक X और एक Y क्रोमोसोम होता है, जबकि महिलाओं में दो X क्रोमोसोम होते हैं।
X क्रोमोसोम पर इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने वाले कई जीन पाए जाते हैं। जब ये जीन दुर्घटनावश ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, तो ऑटोइम्यून बीमारी की संभावना बढ़ जाती है।
- कई शोधों में यह पाया गया है कि X क्रोमोसोम इनएक्टिवेशन की प्रक्रिया यदि सही न हो तो यह इम्यून प्रतिक्रिया को असामान्य बना सकती है।
3. इम्यून सिस्टम की संरचना में अंतर:
महिलाओं का इम्यून सिस्टम सामान्यतः अधिक सक्रिय और प्रतिक्रियाशील होता है। यही कारण है कि वे संक्रमण से बेहतर तरीके से लड़ पाती हैं। लेकिन, यही सक्रियता ऑटोइम्यून रोगों में उल्टा असर डाल सकती है।
- अधिक सक्रिय इम्यून सिस्टम कभी-कभी अपने ही ऊतकों को विदेशी समझकर हमला करने लगता है।
4. प्रेगनेंसी और इम्यून टॉलरेंस:
गर्भावस्था एक अनूठी स्थिति है जहां महिला का शरीर एक अलग डीएनए (बच्चा) को स्वीकार करता है। इसके लिए शरीर को इम्यून टॉलरेंस विकसित करना पड़ता है।
गर्भावस्था के बाद, यह टॉलरेंस बदल सकता है जिससे कुछ महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियाँ शुरू या फिर से सक्रिय हो सकती हैं।
5. मानसिक तनाव और जीवनशैली:
महिलाओं पर कई बार घरेलू, सामाजिक और कार्यस्थल के दवाब अधिक होते हैं। मानसिक तनाव से इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है और यह ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है।
- नींद की कमी, पोषण की कमी और अत्यधिक मानसिक थकान भी कारण बन सकते हैं।
6. सामाजिक और नैदानिक अंतर (Diagnostic Bias):
कई बार महिलाओं के लक्षणों को “भावनात्मक” या “तनावजनित” मान लिया जाता है और रोग की पहचान देर से होती है।
हालांकि यह प्रत्यक्ष कारण नहीं है, पर महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियाँ की पहचान और उपचार में देरी रोग को बढ़ा सकती है।
निष्कर्ष
महिलाएं ऑटोइम्यून बीमारियाँ की शिकार अधिक होती हैं इसके पीछे एक जटिल सम्मिलन है – हार्मोन, आनुवंशिकी, इम्यून सिस्टम की प्रकृति और जीवनशैली। यदि लक्षणों को प्रारंभिक चरण में पहचाना जाए और समय पर रूमेटोलॉजिस्ट से सलाह ली जाए, तो इन रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है।
अंतिम सुझाव
अगर आपको लगातार थकान, जोड़ों में दर्द, त्वचा पर चकत्ते, या सूजन जैसे लक्षण हैं, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें।
रूमेटोलॉजिस्ट से संपर्क करें और जाँच कराएं। समय पर इलाज से जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है।